Monday 21 November 2016

दरिया के बीचो-बीच कर्बला के प्यासों का मातम।

जौनपुर। शीराज़े-हिन्द जौनपुर बेशक अज़ादारी का मरकज़ है। न जाने कितने तारीख़ी जुलूस, इमामबारगाह, मजलिसों को ये अपने दामन में समेटे है। इसी सिलसिले का एक तारीख़ी और अपने किस्म का अनूठा जुलूस गोमती नदी के किनारे अली घाट पर अंजुमन सज्जादिया के ज़ेरे एहतेमाम पूरी शानो-शौकत के साथ मनाया जाता है 20 सफ़र को हज़रत इमाम हुसैन के चेहलुम के दिन जिसे दरिया के अलम के नाम से मक़बूलियत हासिल है। हज़ारों की तादाद में मर्दों, औरतों और मौजूदगी के बीच मजलिस को ख़िताब किया मौलाना महफूज़ खान साहब ने किया। पहली तक़रीर मौलाना हसन अकबर ने, दरमियानी रज़ी बिस्वानी और आख़री तक़रीर डॉ क़मर अब्बास ने किया। नेज़ामत असलम नक़वी साहब ने बख़ूबी किया। मेहँदी आब्दी और बाबू ने सभी ज़ायरीन का अंजुमन सज्जादिया की जानिब से इस्तेकबाल किया। ऐसा पुर कशिश मंज़र की कर्बला की याद ताज़ा हो जाय। बाद ख़त्म मजलिस ज़ुल्जना, अलम का दरिया में जाना हुसैनी जवानों का दरिया के बीचो-बीच मातम और फिर मातमी अंजुमन का दरिया से निकलते वक़्त मौला अब्बास का अलम और जनाबे सकीना के ताबूत का मिलना और हज़ारों की तादाद में मौजूद हुसैनियो के बीच रोने-पीटने का कोहराम बरपा होना। ऐसा मंज़र शायद पूरी दुनिया में कहीं हो। दरिया के पूरे एक हिस्से और अली घाट पर चारों तरफ बस या हुसैन, या हुसैन और हुसैनी मातम दारों का हुजूम। जिसने भी एक बार इस मंज़र को देखा वो कभी भूल नहीं सकता। इतना ही नहीं अंजुमन, तंजीमों और मोहल्ले वालों की तरफ से पानी, चाय की सबील खाने का इफरात इंतेज़ाम भी क़ाबिले ज़िक्र है।