Monday 27 June 2016

समाजवादी पार्टी ने क्यों किया क़ौमी एकता दल के साथ धोखा ?

समाजवादी पार्टी ने क़ौमी एकता दल विलय में धोखा क्यों किया। इस सियासी ड्रामेबाज़ी का मतलब क्या है। ये जानबूझकर रची गयी साज़िश तो नहीं। एक तरफ पार्टी के चीफ मुलायम सिंह की सहमति और यू पी प्रभारी शिवपाल की मौजूदगी में बाक़ायदा विलय की घोषणा, प्रेस कॉन्फ्रेंस और फिर मुख्यमंत्री अखिलेश की नाराज़गी से लेकर बलराम यादव की बर्खास्तगी , संसदीय बोर्ड की बैठक और बलराम यादव की मंत्रिमंडल में वापसी के साथ इस पूरी साज़िश का अंत हुआ। जहाँ तक मुख़्तार अंसारी की अपराधिक छवि और अखिलेश की विकास के कार्य और बेहतर छवि लेकर चुनाव में जाने की बातें बताकर आँख में धूल झोंकी गयी। तो अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल से लेकर सपा के विधायक और पार्टी में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जिनके ऊपर विभिन्न आपराधिक मुक़दमे दर्ज न हो और उनके नाम से उस जनपद के आस-पास के इलाके का आम आदमी ख़ौफ़ से कांपता न हो ज़ुल्म का शिकार न हो। रही बात मुख्यमंत्री की छवि की तो आने वाला समय बताएगा, न बिजली न पानी न सड़क न न्याय, बस एक जात विशेष् का दबदबा, हर तरफ भ्रस्टाचार, दलाली, कमीशनखोरी का बाज़ार गर्म है। वो अपने को नितीश कुमार समझते हैं तो अखिलेश की ग़लतफ़हमी है। नितीश को भी गठबंधन की ज़रूरत पड़ी थी। फिर ये धोखा क्यों? कहीं जानबूझकर ये क़ौमी एकता दल को कमज़ोर और रुसवा करने का प्रोग्राम तो नहीं था। पर अगर क़ौमी एकता दल अपनी इस शिकस्त को हथियार के रूप में इस्तेमाल करे तो पूरे पूर्वांचल में सपा का सफाया हो सकता है। वैसे भी मुसलमानो ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुये ये एहसास किया है की अंसारी बंधुओं और क़ौमी एकता दल के साथ ऐसा सिर्फ मुस्लमान होने के नाते और मुस्लिम विरोधी ताक़तों के इशारे पर हुआ है। अगर ये बात आम हो गयी तो समझो सपा साफ हो गयी।

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