Sunday 26 June 2016

20 रमज़ान का 100 साल पुराना तारीख़ी जुलूस निकला। या अली या हुसैन की सदा गूंजी।

जौनपुर। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स0)के चचेरे भाई, दामाद, हज़रत इमाम हसन, हुसैन, मौला अब्बास और जनाबे ज़ैनब  के पिता और शिया मुसलमानो के पहले इमाम हज़रत अली इब्ने अबू तालिब की शहादत की याद में मोहल्ला बलुआघाट के मददू की इमामबारगाह से सौ साल पुराना तारीख़ी जुलूस निकला। चिलचिलाती धूप, गर्मी के बावजूद भारी तादाद में मर्द, औरत और बच्चे रोज़ा रखे हुये जुलूस में शामिल हुये। लगभग तीन बजे दोपहर  शुरू हुई इस मजलिस को ख़िताब करते हुये मौलाना क़ैसर अब्बास साहब ने बताया की चौदह सौ साल पहले सुबह की नमाज़ में मौला अली पर आतंकवादी इब्ने मुलजिम ने वार किया और मौला ज़हर में बुझे तीर से रोज़े की हालत में शहीद हुये। हज़रत अली के जैसा दुनिया में न शिक्षाविद् हुआ, न न्याय वादी हुआ और न ऐसा बहादुर और न ही ऐसा शासक। आपने अपने शासन काल में खुले मंच से पूछा की मेरे शासन कॉल क्या कोई भूखा सोया है। एक भी आवाज़ नहीं आयी। दुनिया की इब्तेदा से अब तक किसी शासक की ये हैसियत नहीं की वो अपनी जनता से खुले मंच पर ये दावा कर सके। उनकी वेलदात काबा में और शहादत मस्जिद में हुयी। मसाएब सुनकर लोग सर पीट-पीट कर रोये। मजलिस के बाद तुर्बत के साथ अलम उठाये अज़ादार चहरसू पहुंचे और वहां हुयी तक़रीर के बाद शाह के पंजे की इमामबारगाह की तरफ जुलूस रवाना हुआ। इस तारीख़ी इमामबारगाह में हज़ारों शिया मुसलमान अपने इमाम की ताजिये के दफनहोने के बाद रोज़ा इफ्तार करेंगे। इस आतंकवाद विरोधी जुलूस में असलम नक़वी, क़मर हसनैन दीपू, तनवीर अब्बास शास्त्री, रूमी, आज़म ज़ैदी , मुन्ना अकेला प्यारे भाई आदि मौजूद रहे।

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