जौनपुर का शाही किला जो ऐतिहासिक धरोहर है।न जाने कितनी ऐतिहासिक घटनाये इससे जुड़ीं हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी सुरक्षा और संरक्षा में लाखों-करोड़ों ख़र्च करता है। कभी दीवारों की उसी ऐतिहासिक स्वरुप में मरम्मत पुनर्निर्माण और बेहतर रख-रखाव और सुंदरीकरण के लिये न जाने कितने इंतज़ाम कर्मचारियों की पर्याप्त मात्रा में व्ययवस्था। पर इसके ठीक विपरीत जौनपुर नगर पालिका प्रशासन बे खौफ़ होकर किले की पश्चिमी दीवार के पीछे जहाँ से सदभावना पुल का संपर्क मार्ग गुज़रा है वहां बाक़ायदा कूड़ा घर बना रखा है। शहर के नाले की खुदाई का कीचड़ कूड़ा गंदगी यहाँ इफरात है।उसपर से सूअरों का जमावड़ा इस पूरे माहौल को और वीभत्स बनाता है। सवाल ये है की ये कूड़ा घर क्या किले की शोभा बढ़ा रहा है। या फिर भारतीय पुरातत्व विभाग के सुरक्षा -संरक्षा के प्रयासों को ठेंगा दिखाना नहीं तो और क्या है। और इस कूड़े गन्दगी से किले के अस्तित्व को ख़तरा नहीं है। काश नगर पालिका प्रशासन इस सच को समझ पाता और इस कृत्य से बाज़ आता।देखें क्या होता है।
Wednesday 30 December 2015
Sunday 27 December 2015
जौनपुर का ऐतिहासिक शाही किला शर्की काल से जंगे आज़ादी और पिकनिक स्पॉट तक के सफ़र की दास्ताँ।
जौनपुर का ऐतिहासिक शाही किला जिसे शर्की सल्तनत के फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने बनवाया था। वक़्त गुज़रा दौर बीता सन् 1857 में जब अंग्रेजों के ख़िलाफ़ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन छेड़ा था तब 1857 के प्रथम शहीद राजा इदारत जहाँ जिन्होंने मुल्क की आज़ादी की लड़ाई में राज पाट और यहाँ तक की जान भी न्योछावर कर दी
के संग्राम का ये केंद्र बिंदु था। गोमती नदी के रास्ते दुश्मन की फ़ौज ने हमला किया और किले के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गयी जिसमे काफी हद तक वो कामयाब भी रहे। जंग के दौरान फ़ौज के कमांडर इन चीफ मेहदी जहाँ अंग्रेजों से लड़ते शहीद हुये जिनकी मज़ार किले में घुसते ही सामने ऊंचाई पर है। फिर उन्ही के भाई शहीद सफ़दर जहाँ अंग्रेजों से लड़ते शहीद हुये जिनकी मज़ार अंदर मस्जिद के सामने पेड़ के नीचे है। उल्लेखनीय है की दोनों शहीदों की लाश को गोमती में फेकने की कोशिश की गयी पर लाश टस से मस न हुइ । तब उन्हें यही दफनाया गया।धीर-धीरे किला खंडहर में तब्दील होने लगा। दीवारों का ढहना झाड़ी गन्दगी यही किले का सच हो गया। फिर क्राइम करने वालों की ये मनपसन्द जगह हो गयी। तभी कोई ढाई दशक पहले पुरातत्व विभाग ने अपनी देख रेख में बाक़ायदा इसे लिया। फिर दीवारों की मरम्मत चारों तरफ लोहे के छड़ की घेरा बंदी हरी मक़मली घांस किले के अंदर चलने के लिये चारों तरफ बेहतरीन सड़क बाग़ बगीचा पेड़ फूल पौधे आने जाने का टाइम साफ सफाई अनुशासन पम्पिंग सेट पीने का पानी टॉयलेट डस्ट बिन बैठने की कुर्सी हरियाली आदि ने इसे पिकनिक स्पॉट बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अब तो हर हॉलिडे 15 अगस्त 26 जनवरी वेलेंटाइन डे पर तो यहाँ का नज़ारा ही खूब होता है। हर रोज़ सुबह शाम यहाँ टहलने शहर के कोने-कोने से लोग आते हैं। पूरे परिवार की पिकनिक के साथ प्रेमी युगल के लिये यह मनपसंद जगह है जिन्हें हर रोज़ भारी तादाद में देखा जा सकता है। फ़ोटो ग्राफी और भोजपुरी फिल्मो की शूटिंग की भी ये उपयुक्त जगह है जो अक्सर होती है। बेशक अंदर की हरियाली खुशनुमा माहौल देखकर एहसास होता है की हम किसी पर्यटन स्थल पर आये हैं। नहीं है तो बस एक गाइड जो लोगों को ऐतिहासिक सच बता सके।
के संग्राम का ये केंद्र बिंदु था। गोमती नदी के रास्ते दुश्मन की फ़ौज ने हमला किया और किले के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गयी जिसमे काफी हद तक वो कामयाब भी रहे। जंग के दौरान फ़ौज के कमांडर इन चीफ मेहदी जहाँ अंग्रेजों से लड़ते शहीद हुये जिनकी मज़ार किले में घुसते ही सामने ऊंचाई पर है। फिर उन्ही के भाई शहीद सफ़दर जहाँ अंग्रेजों से लड़ते शहीद हुये जिनकी मज़ार अंदर मस्जिद के सामने पेड़ के नीचे है। उल्लेखनीय है की दोनों शहीदों की लाश को गोमती में फेकने की कोशिश की गयी पर लाश टस से मस न हुइ । तब उन्हें यही दफनाया गया।धीर-धीरे किला खंडहर में तब्दील होने लगा। दीवारों का ढहना झाड़ी गन्दगी यही किले का सच हो गया। फिर क्राइम करने वालों की ये मनपसन्द जगह हो गयी। तभी कोई ढाई दशक पहले पुरातत्व विभाग ने अपनी देख रेख में बाक़ायदा इसे लिया। फिर दीवारों की मरम्मत चारों तरफ लोहे के छड़ की घेरा बंदी हरी मक़मली घांस किले के अंदर चलने के लिये चारों तरफ बेहतरीन सड़क बाग़ बगीचा पेड़ फूल पौधे आने जाने का टाइम साफ सफाई अनुशासन पम्पिंग सेट पीने का पानी टॉयलेट डस्ट बिन बैठने की कुर्सी हरियाली आदि ने इसे पिकनिक स्पॉट बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अब तो हर हॉलिडे 15 अगस्त 26 जनवरी वेलेंटाइन डे पर तो यहाँ का नज़ारा ही खूब होता है। हर रोज़ सुबह शाम यहाँ टहलने शहर के कोने-कोने से लोग आते हैं। पूरे परिवार की पिकनिक के साथ प्रेमी युगल के लिये यह मनपसंद जगह है जिन्हें हर रोज़ भारी तादाद में देखा जा सकता है। फ़ोटो ग्राफी और भोजपुरी फिल्मो की शूटिंग की भी ये उपयुक्त जगह है जो अक्सर होती है। बेशक अंदर की हरियाली खुशनुमा माहौल देखकर एहसास होता है की हम किसी पर्यटन स्थल पर आये हैं। नहीं है तो बस एक गाइड जो लोगों को ऐतिहासिक सच बता सके।
Saturday 26 December 2015
जौनपुर की हैरतअंगेज़ घटना। पिंजरे में क़ैद हुआ तेंदुआ लोगों ने ली राहत की साँस।
जौनपुर जनपद को उस समय हैरत अंगेज़ घटना का सामना करना पड़ा जब शुक्रवार को जनपद मुख्यालय से कोई 5 किलोमीटर की दूरी पर मल्हनी रोड पर डेरवा रामपुर गावँ जो एक दम सड़क के किनारे स्थित है। खेत में काम कर रहे किसानो ने तेंदुआ देखा। बहरहाल पूरी सूझबूझ से ग्रामीणों ने उसे क़ाबू करने की कोशिश की पर वो तीन लोगों को ज़ख़्मी करता हुआ एक घर में घुस गया। इलाके की पुलिस फ़ोर्स ने बहादुरी का परिचय देते हुये महिलाओं का महफूज़ बाहर निकाला और चैनल गेट के अंदर उसे बंद किया। ये भी मालिक की मेहरबानी और इत्तेफ़ाक़ की उस घर में चैनल गेट था। परंतु उस तेंदुए को पकड़ने में पूरे 24 घंटे लग गये। जब कानपुर वाराणसी और लखनऊ की टीम ने विशेष् अभियान चलाकर अंततः उसे पिंजरे में क़ैद कर लिया। इस दौरान उसे बेहोशी का इंजेक्शन देना पड़ा। वन विभाग के अधिकारीयों का कहना था की शहर से सटे रिहायशी इलाके में इसका आना हैरत अंगेज़ है ये ज़रूर जंगल से नदी किनारे भटककर यहाँ तक पहुंचा होगा बहरहाल चाहे जो हो उसके क़ैद होने पर लोगों ने राहत की साँस ली है।वरना ये ख़तरनाक भी साबित हो सकता था।अफरा तफरी और दहशत का आलम ये था की आस-पास के इलाके के लोगों ने तेंदुए के पकडे जाने तक खौफ़ में वक़्त बीता। डर ये था कि कहीं और भी न हो और हमला कर दे। कुल मिलकर एक बड़ा हादसा और अनहोनी होने से बच गयी। तेंदुआ इतना खूंखार था कि उसे बेहोशी का इंजेक्शन दो बार देना पड़ा। जैसे ही वो बेहोश हुआ पलक झपकते उसे जाल डालकर गिरफ्त में लिया गया। जब पिंजरे में पहुँचने के बाद उसे होश आया तो उसकी दहाड़ ज़बरदस्त थी।
Thursday 24 December 2015
जश्न ईद मिलादुन्नबी आतंकवाद के ख़िलाफ़ संकल्प दिवस।
जश्न ईद मिलादुन्नबी यानि हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (स0) की यौमे विलादत (जनम दिन) की ख़ुशी का जश्न। पूरी दुनिया में सुन्नी मुस्लमान माहे रबी अव्वल की 12 तारीख़ और शीया मुसलमान 17 तारिख को अपनी अपनी आस्था के मुताबिक़ हुज़ूर का जनम दिनमनाते हैं।इस आयोजन को विशाल रूप देने के लिये दुनिया के बहुत से मुल्कों में 12 से 17 तक पूरे हफ्ते जश्न मनाते हैं जिसे हफ्ता-ए-वहदत के नाम से जाना जाता है। जिसकी शुरुवात ईरान ने किया। बेशक ये उसकी यौमे विलादत है जिसके सदके में इस पूरी कायनात की खिलक़त हुइ। जो सबके लिये रहमत बनकर आये। जो सुल्ताने मदीना हैं। नबियों के सरदार हैं महबूबे इलाही हैं हबीबे ख़ुदा हैं। अल्लाह ने जिनके उपर अपना पाक कलाम क़ुरान पाक नाज़िल किया। जिन्होंने कभी झूठ नहीं बोला ये उनकी सच्चाई उत्तम चरित्र बेहतर व्ययव्हार का नतीजा था की इस्लाम की नीतियों का प्रभाव लोगों पर तेज़ी से होने लगा। लोग दूर-दूर से सिर्फ आपको देखने और मिलने आने लगे। उस समय जिन लोगों ने दिने इस्लाम का कलमा नहीं पढ़ा उन्होंने रसूल अल्लाह की सदाक़त का कलमा ज़रूर पढ़ा। आपकी शांति और अमन का पैग़ाम लोगों तक पहुचने लगा।हुज़ूर के इतने अलप परिचय से ये साबित है की इंसान और मुस्लमान होने की पहली शर्त उत्तम चरित्र सच्चा होना और उत्तम व्ययव्हार की नितांत आवश्यकता है फिर लोगों को सरे आम क़त्ल करने वाले औरतों बच्चों पर ज़ुल्म करने वाले लोगों को बम से उड़ाने वाले आतंकवादी मुस्लमान कैसे हो सकते हैं।आतंकवाद पूरी दुनियाये इंसानियत के लिए बड़ा ख़तरा है। जो इस्लाम का लबादा ओढ़कर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।आज पैग़म्बरे इस्लाम की यौमे विलादत के मौके पर हमें ये प्रण लेना होगा की आतंकवादियों को बेनक़ाब करना उन्हें नेस्तनाबूद करना हमारा पहला फ़रीज़ा है। आतंकवाद का खुलकर जमकर विरोध करना उनके ज़ुल्म से दुनिया को बचाने में हम कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। हम पैग़म्बरे इस्लाम के दीन को रुस्वा और बदनाम नहीं होने देंगे।आज के दिन हम क़सम खाएं की अपने चरित्र सच्चाई अच्छे व्यवहार और जन सेवा से दुनिया जीत लेंगे। यही रसूल की सीरत सुन्नत और बन्दगी इंसानियत भी यही है। दुनिया को अमन शांति का पैग़ाम देना वक़्त की जरूत और इस्लाम की शिक्षा भी यही है।
Tuesday 22 December 2015
टी डी कॉलेज कॉलेज छात्रसंघ चुनाव का ऐतिहासिक नतीजा। सारे रिकॉर्ड ध्वस्त।
जौनपुर।टी डी कॉलेज यानि तिलकधारी महाविद्यालय जो सिर्फ इस जनपद ही नहीं बल्कि पूर्वांचल की शान है।इसका मर्तबा किसी प्रख्यात विश्वविद्यालय से कम नहीं है। यहाँ से पढ़े छात्रों ने प्रशासनिक सेवा विज्ञान साहित्य और राजनीत में देश ही नहीं विदेश में भी नाम रौशन किया।यहाँ की छात्र राजनीति ने कई बड़े छात्र नेता पैदा किये। जिसमे जयप्रकाश सिंह कॉमरेड का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने छात्र राजनीत में राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की और वो गज़ब के वक्ता भी थे।यहाँ के छात्र नेता की बड़ी राजनैतिक हैसियत होती थी। प्रशासन पर बड़ा प्रभाव होता था।यहाँ के छात्र संघ चुनाव में कई विश्वविद्यालय के छात्र नेता आते थे। और जब चुनाव क़रीब आता तो कई पार्टियों के बड़े नेताओं की मुख्य भूमिका होती थी जो मठाधीश कहे जाते थे।और एक अहम् और कटु सत्य ये भी की आज के पहले यहाँ का छात्र संघ अध्यछ सिर्फ राजपूत ही होता था। जैसा बताया जाता है की सिर्फ एक बार वर्तमान के सपा नेता सुशील।दुबे के पिता ही चुनाव जीते थे। बाक़ी पूर्व सांसद स्वर्गीय अर्जुन यादव को भारी समर्थन होने के बाद भी छात्र संघ अध्यछ निर्वाचित नहीं हो सके थे।परन्तु आज सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हुये नया इतिहास रचा गया।अध्यछ पद पर नवीन यादव महामंत्री पद पर राहुल यादव तथा उपाध्यछ पद पर कौशल यादव ने जीत का परचम लहराया।
Monday 21 December 2015
जौनपुर को मिलेगा बी श्रेणी का दर्जा या सिर्फ वादा रहा ?
साल 2015 अपनी आख़री सांसें ले रहा है। जौनपुरवासी बड़ी उम्मीद लगाय हैं कि उन्हें न ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव निराश करेंगे और न ही वर्ष 2015. दर असल अभी कुछ दिन पहले जनपद में एक वैवाहिक कार्यक्रम मे शिरकत करने आये सूबे के वज़ीरे आला अखिलेश यादव ने जनपद वासियों को बी श्रेणी का तोहफा दिये जाने का वादा किया था। तब से ज़िले के लोगों में आशा की किरण जगी है की विभिन्न नागरिक सुविधाओं के साथ-साथ विद्युत आपूर्ति में सुधार होगा। सरकारी कर्मचारियों को मकान किराये भत्ते में इज़ाफ़े को लेकर भी उत्साह है। जनपद के वरिष्ठ काबीना मंत्री सहित कई बड़े नेताओं ने आश्वासन और विश्वाश दिलाया है। अब देखना ये है की मुख्यममंत्री ज़िले के लोगों को साल ख़त्म होने के पहले नए साल के मौके पर ये तोहफा देते हैं या फिर ये मानके चले की हम तेरे होंगे ज़रूर ये वादा रहा।
Sunday 20 December 2015
ख़त्म हुआ माहे-अज़ा हाय हुसैन अलविदा की गूंजी सदा।
यूं तो हज़रत इमाम हुसैन के चाहने वाले पूरे साल ग़म मनाते हैं। पर इस्लामिक कैलेंडर के माहे मुहर्रम की पहली तारीख़ से लेकर माहे रबि अव्वल की 8 तारिख तक यानि कुल दो महीना 8 दिन पूरी शिद्दत के साथ इमाम हुसैन का ग़म मानते हैं। इस दौरान शिया मुसलमानो के यहाँ शादी-ब्याह बर्थ-डे जैसे किसी भी ख़ुशी के कार्यक्रम की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इतना ही नहीं लाल गुलाबी कपड़ों से भी दूर सिर्फ काले कपडे पहनते हैं। आज के इस आधुनिक युग में भी ये क़ौम दो महीना ख़ुशी और उसके कार्यक्रम से कोसों दूर रहती है। यहाँ तक की महिलाएं अपनी चूड़ियाँ तोड़ देती हैं और साज-श्रृंगार से बाक़ायदा दूरी रहती है। इतनी कठिन तपस्या की आख़िर वजह क्या है। अब से 1400 साल पहले हज़रत मुहम्मद साहब (स0) इस दुनिया से रुख़सत हो चुके थे उनके नवासे(नाती) हज़रत इमाम हुसैन उस वक़्त के इमाम थे। उस वक़्त हुकूमत और राजपाट पर यज़ीद क़ाबिज़ था। जिसे आप आज के लादेन और बग़दादी का पूर्वज समझिये। जो दिखने में मुस्लमान का चोला पहने था लेकिन आतंकवादी और ज़ालिम था। उसने इमाम से कहा आप मेरी बैयत(समर्थन) कर दो। ये मुमकिन नहीं था इमाम ने इंकार किया उसने जंग की चुनौती दी। और कर्बला के मैदान में हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की जिसमे हज़रत मुहम्मद (स0) के घराने के लोगों की काफी संख्या थी को तीन दिन का भूख प्यासा रखकर शहीद कर दिया जिसमे 6 माह का बच्चा भी था। शहीदों के लाशों को दफन भी नहीं करने दिया। ख़ैमों(कैम्पों) में आग लगा दी। और बचे हुये लोगों पर महीनो लगातार ज़ुल्म किया। हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने क़ुरबानी दी शहादत दी भूखे प्यासे रहे कष्ट सहा पर हक़ न्याय इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा न ही ज़ुल्म और आतंकवाद के सामने घुटना टेका। इस्लाम और आतंकवाद को समझने के लिए इससे बेहतर मिसाल नहीं हो सकती। वर्तमान में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं सब उसी यज़ीद आतंकवादी के वंशज हैं। इसी लिये हुसैनी हर साल पूरे मनोयोग से कर्बला की याद में ग़म मानते हैं ताकि हक़ इंसानियत मज़लुमियत न्याय सब्र बाक़ी रहे और ज़ालिम आतंकवादी बेनक़ाब होते रहें। असली इस्लाम पहचाना जाय। इसिलिय पूरी दुनिया में इमाम हुसैन के चाहने वालों की मस्जिदें इमामबाड़े और ज़िंदगियाँ इनके निशाने पर हैं। पर हुसैन वाले डरने वाले नहीं हर दौर में शहीद होते रहेंगे मगर हक़ न्याय इंसानियत और सच्चे इस्लाम के साथ रहेंगे। ज़िक्रे हुसैन करते रहेंगे और हर दौर के आतंकवाद पर लानत भेजते रहेंगे खुलकर जमकर आतंकवाद का विरोध करते रहेंगे। और आतंकवाद को बेनक़ाब करते रहेंगे ।
हज़रत इमाम हुसैन को इस मुल्क से बड़ी मुहब्बत थी। और यहाँ गमें हुसैन मनाने पर कोई पाबन्दी नहीं जबकि कई इस्लामी मुल्कों में है। जो हुसैनी फ़िक्र है वही इस्लाम की मूल आत्मा है। या हुसैन जय हिन्द।
हज़रत इमाम हुसैन को इस मुल्क से बड़ी मुहब्बत थी। और यहाँ गमें हुसैन मनाने पर कोई पाबन्दी नहीं जबकि कई इस्लामी मुल्कों में है। जो हुसैनी फ़िक्र है वही इस्लाम की मूल आत्मा है। या हुसैन जय हिन्द।
Thursday 17 December 2015
प्रकृति सदैव न्याय करती है। पेंशनर्स दिवस पर बोले सी.डी.ओ.प्रकाश चंद श्रीवास्तव।
जौनपुर।पेंशनर्स से खचाखच भरे कलेक्ट्रेट सभागार में पेंशनर्स दिवस समारोह के अवसर पर बोलते हुये मुख्य विकास अधिकारी प्रकाश चंद श्रीवास्तव ने कहा की प्रकृति हमेशा न्याय करती है। वहाँ सब का लेखा जोखा है।वो क्रेडिट-डेबिट हिसाब से करती है।श्री प्रकाश का कहना था हम जो चाहते हैं ज़रूर कर लेते हैं अहम् बात ये है की हम कार्य के प्रति कितने सवेंदनशील हैं।उन्होंने पेंशनर्स की सारी समस्याओं को गंभीरता पूर्वक संज्ञान में लेते हुये हर महीने के गुरुवार को विकास भवन में पेंशनर्स दिवस मनाने की बात कही।और समस्त कार्यालय अध्यक्ष से भी ऐसी अपेक्षा की। श्री श्रीवास्तव ने पेंशनर्स के मेडिकल रिम्बर्समेंट समय से निस्तारित करने की भी अधिकारीयों से अपेक्षा की।सी.डी.ओ. महोदय ने इस बात पर बल दिया की हमें हमेशा ये ध्यान रखना चाहिये की कल सभी अधिकारी-कर्मचारी को भी पेंशन लेनी है। जो दूसरों को परेशान करेगा वो खुद भी परेशां होगा। हर माह की पहली तारिख को पेंशन दिलाने और सारे मामले समय से निबटाने के लिये पेंशनर्स ने मुख्य कोषाधिकारी राकेश सिंह की प्रशंसा की।इस अवसर पर तीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशनर्स को सम्मानित भी किया गया।उपस्थित समस्त पेंशनर्स प्रतिनिधियों के उठाये गए बिन्दुओ का जवाब भी दिया और भविष्य में सहयोग और कार्यवाही का भरोसा भी दिया।सैकड़ों की संख्या में उपस्थित पेंशनर्स अधिकारी कर्मचारियों के लिए मुख्य कोषाधिकारी की तरफ से जलपान का बेहतर इंतेज़ाम किया गया था। कार्यक्रम सफल था पेंशनर्स सी डी ओ तथा वरिष्ठ कोषाधिकारी राकेश सिंह से शत प्रतिशत संतुष्ट दिखे।इस अवसर पर विभिन्न विभागों के अधिकारी प्रतिनिधि सहित कोषागार कर्मी मौजूद रहे।जिनमे प्रमुख रूप से चकबंदी कर्मी तनवीर अब्बास शास्त्री सहित कोषागार कर्मी शैलेन्द्र यादव,माता प्रसाद,दयाराम गुप्ता,मनोज,विमलेश भी उपस्थित रहे।अंत में मुख्य विकास अधिकारी प्रकाश चंद श्रीवास्तव,वरिष्ठ कोषाधिकारी राकेश सिंह तथा पुलिस अधीक्षक ग्रामीण ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।
Wednesday 16 December 2015
टाकीज़-सुनहरे और बदलते वक़्त की दिलचस्प दास्ताँ।
बस यूं ही बैठे-बैठे ज़ेहन ने गुज़रे दौर का सफ़र तय किया।जब टाकीज़ और फिल्मों का ज़माना था।फ़िल्में मनोरंजन का एकमात्र साधन और टाकीज़ उनके प्रदर्शन का एकमात्र स्थान । टाकीज़ के मालिक का शुमार शहर के रईस और बड़े लोगों में होता था।जो एक दो टाकीज़ का मालिक हो वो सांसद-विधायक को और जो चार-छः टाकीज़ का मालिक हो राजनैतिक दल को चंदा देता था।मालिक और प्रबंधक तो दूर अगर गेटकीपर भी पहचान कर सम्मान दे दे तो बड़ी बात होती थी।और अगर प्रबंधक विशेष् व्यवस्था में अलग से एंट्री देकर बैठा दे और जलपान भी करा दे तो वो आदमी ऐंठ कर चलता था।आज महानगरों में बमुश्किल तमाम 5 या6 मल्टीप्लेक्स/मॉल होंगे तब महानगरों में 40-50 टाकीज़ होते थे।दोपहर का शो छात्रो-नौजवानो का मैटिनी-इवनिंग शो फैमिली और मॉर्निंग-नाईट शो विशेष् वर्ग का होता था।पहले दिन पहला शो देखना ऐसे था मानो ग्रीनिज़् बुक में नाम लिख जायेगा।एडवांस बुकिंग लाइन का लगना टिकटों का ब्लैक होना। फिल्मों का सिल्वर गोल्डन प्लैटिनम जुबली होना पुरानी बात हुइ। वक़्त बदला दौर बदला टी .वी
.के रास्ते शुरू हुये सफ़र ने केबिल डिश कंप्यूटर इंटरनेट सी डी पेन- ड्राइव् की मंज़िल पाई। पर इस पूरे सफ़र में फिल्मों का वजूद तो बाक़ायदा बचा रहा लेकिन मल्टीमीडिया और आधुनिक मोबाइल के दौर में टाकीज़ के वजूद ने दम तोड़ा और इतिहास के पन्नों की ज़ीनत बन गया। जो टाकीज़ कभी लैंडमार्क होता था।अब उसकी बिल्डिंग में शॉपिंग मॉल गोदाम कोल्ड स्टोरेज आदि खुल गये। अमिताभ बच्चन की जिन फिल्मों को स्कूल छोड़कर पैसा चुराकर और बड़ी मशक्कत के साथ लोगों ने देखा था अब उन्ही फिल्मों को आसानी से डिश टीवी पर देखकर अजीब सी अनुभूति होती है।तो कुल मिलाकर टाकीज़ कभी जिसका मनोरंजन की दुनिया में अपना एक बड़ा मुक़ाम था अब इस दौर में अन्तिंम सांसें गिन रहा है। टाकीज़ का स्वर्णिम युग समाप्त हुआ।
.के रास्ते शुरू हुये सफ़र ने केबिल डिश कंप्यूटर इंटरनेट सी डी पेन- ड्राइव् की मंज़िल पाई। पर इस पूरे सफ़र में फिल्मों का वजूद तो बाक़ायदा बचा रहा लेकिन मल्टीमीडिया और आधुनिक मोबाइल के दौर में टाकीज़ के वजूद ने दम तोड़ा और इतिहास के पन्नों की ज़ीनत बन गया। जो टाकीज़ कभी लैंडमार्क होता था।अब उसकी बिल्डिंग में शॉपिंग मॉल गोदाम कोल्ड स्टोरेज आदि खुल गये। अमिताभ बच्चन की जिन फिल्मों को स्कूल छोड़कर पैसा चुराकर और बड़ी मशक्कत के साथ लोगों ने देखा था अब उन्ही फिल्मों को आसानी से डिश टीवी पर देखकर अजीब सी अनुभूति होती है।तो कुल मिलाकर टाकीज़ कभी जिसका मनोरंजन की दुनिया में अपना एक बड़ा मुक़ाम था अब इस दौर में अन्तिंम सांसें गिन रहा है। टाकीज़ का स्वर्णिम युग समाप्त हुआ।
Sunday 13 December 2015
दुनिया भर में मशहूर रन्नो का जुलूस अमारी 14 दिसम्बर को।
जौनपुर। जनपद मुख्यालय से कोई 20-25 किलोमीटर दूर सुल्तानपुर रोड पर स्थित बख्शा ब्लाक के दक्खिनपट्टी रन्नो ग्राम की जुलूसे अमारी विश्वविख्यात है।यहाँ पूर्वांचल के समस्त ज़िलों सहित देश के कोने-कोने ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं।इस अमारी में पचास हज़ार से लेकर पचहत्तर हज़ार तक की तादाद में लोग शिरकत कर चुके हैं।10 बीघे में तो चार पहिया और दुपहिया वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था होती है। एक सुबह से सुल्तानपुर रोड पर जो काले लिबास में दुपहिया-चारपहिया वाहनों से अज़ादारो के आने का सिलसिला शुरू होता है वो कहीं रात में ही जाकर थमता है।हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में उनका ग़म मनाने या यूं कहें की आतंकवाद के विरुद्ध जमकर विरोध प्रदर्शन करने हुसैन के चाहने वालों की भारी तादाद के बीच सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक चलने वाले इस कार्यक्रम में आयोजकों की तरफ से न जाने कितने कुंतल खाने का इंतज़ाम होता है। इतना ही नहीं पूरे ग्राम में जगह-जगह घर-घर खाने-पीने का इफरात इंतेज़ाम होता है।सन् 2002 में मौलाना हसन अकबर ख़ान जो इस प्रोग्राम के मुख्य कर्ता धर्ता हैं ने अपने सहयोगियों के साथ इसे क़ायम किया था जो मात्र 14 साल के सफ़र में कामयाबी की मंज़िल तय कर चुका है।हमसे इस प्रोग्राम के बारे में बात करते हुये हसन अकबर साहब ने बताया कि इस साल दुनिया का सबसे ऊँचा 133 फिट काअलम उठाया जायेगा।देश दुनिया के जितने भी मशहूर खतीब नौहेख्वां है लगभग सभी यहाँ आ चुके हैं। कर्बला के मक़तल की मंज़र कशी के मंज़र का जवाब नहीं। इलाके भर के हर क़ौमों मिल्लत के लोग यहाँ ज़रूर आते हैं। क्योंकि जो भी हक़परसत है सत्यवादी है।न्यायप्रिय है। मज़लूम है वो हुसैनी है और जहाँ हुसैन हैं वहां आतंकवाद हो नहीं सकता जहाँ आतंकवाद वहां हुसैन नहीं हो सकते। बिना हुसैन के दीन इस्लाम की कल्पना भी नहीं हो सकती। जो हुसैनी फ़िक्र है वही हमारे मुल्क की मूल आत्मा है। हुसैन और हिंदुस्तान को कोई जुदा कर नहीं सकता या हुसैन जय हिन्द।
Saturday 12 December 2015
चार बजे भोर में कलेक्ट्रेट से रवाना होगी मतगणना कर्मियों की बस।
जौनपुर।पंचायत निर्वाचन 2015 की मतगणना के लिए कर्मियों को लेकर सभी 21 ब्लाक के लिये 4 बजे भोर में कलेक्ट्रेट से रविवार 13 दिसम्बर को बसें रवाना होगी।हमसे बात करते हुये निर्वाचन यातायात से जुड़े अधिकारी राकेश बहादुर सिंह ने बताया की सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है। बसों के लाइनअप करने और ब्लॉकवार इश्तेहार चस्पा करने का कार्य जारी है। श्री सिंह का कहना था कि हम अपनी तैयारी के अनुसार ठीक 4 बजे से बसों को रवाना करेंगे जिससे कर्मी समय से ब्लाक पहुंचे और मतगणना का कार्य समय से संपन्न हो सके।
Friday 11 December 2015
सड़क पर बारात जाम की आफत जनता की सांसत।
आजकल शादियों का सीज़न है। शहर में जिधर भी निकलो सिर्फ बारात। फिर क्या गाजा-बाजा,डी.जे. वी.जे. गाड़ियों का लंबा क़ाफ़िला बीच सड़क पर बिंदास धूम-धड़ाका पूरे इत्मिनान के साथ डांस आतिश बाज़ी। दूसरी तरफ भीषण जाम। साइकिल-रिक्शा ऑटो और गाड़ियां एम्बुलेंस में मरीज़। पैदल बूढ़ा जवान मर्द औरत बुरी तरह हलाकान। कोई पुरसाने हाल नहीं।उनकी मर्ज़ी जब सड़क छोड़े। न कोई निज़ाम न व्यवस्था न क़ानून न कोई सुनने वाला। यहाँ सब चलता है। एडजस्ट करना पड़ता है। सो करो।
डेढ़ सौ साल पुराना 28 सफ़र का तारीख़ी जुलूस उठा।
जौनपुर।अज़ादारी का मरकज़ है।आज इस्लामिक कैलेंडर के सफ़र माह की 28 तारीख़ को डेढ़ सौ साल पुराना तारीख़ी जुलूस इमामबाड़ा मरहूम हसनैन अहमद मखदूंम शाह अढ़न में बाद ख़त्म मजलिस उठा।मजलिस को ख़तीबे अहलेबैत डॉ क़मर अब्बास ने खेताब किया।सोज़ख़्वानी के फ्रायज़ को डॉ शबाब हैदर ने अंजाम दिया।मुसलमानो के आख़री पैग़म्बर मुहम्मद मुस्तफा स0 की वफ़ात और उनके नवासे हज़रत इमाम हसन की शहादत का ग़म मनाने के लिये आज मजलिस मातम जुलूस उठाया जाता है।सक़लैन अहमद खान साहबे ब्याज़ अंजुमन जाफरी ने बताया की 150 साल पहले मरहूम मौलवी इनायत खां साहब ने इस जुलूस को क़ायम किया था। जौनपुर के तारीख़ी और बड़े जुलूसों में से एक इस जुलूस को अंजुमन जाफरी उठाती है।जैसे ही मजलिस ख़तम हुइ अंजुमन जाफ़री ने बैनी नौहा रो-रो के मदीने वालों से सब हाल सुनाया ज़ैनब ने पढ़ा लोगों की आँखों से आंसू छलक आये। इस इमामबारगाह से उठकर कोतवाली चौराहा सहित मुख्य मार्गों से होते हुये जुलूस सदर इमामबाड़े पहुंचेगा जहाँ ताज़िया दफ़न होगा।भारी संख्या में औरत मर्द बच्चे शामिल रहे।जगह-जगह सबील चाय पानी का इफरात इंतेज़ाम है। इस मौके पर तमाम अज़ादारो के साथ सक़लैन अहमद।मुन्ना अकेला।बाबू।तहसीन शाहिद।मुन्ने राजा।तनवीर अब्बास शास्त्री । अंजुम सईद।आदि रहे।
Thursday 10 December 2015
नक़्क़ाशी दार मेहराबनुमा दीवार का हो रहा निर्माण।
जौनपुर शहर के सुंदरीकरण का कार्य प्रगति पर है।शहर को ख़ूबसूरत बनाने में इस बात का ख़ास ध्यान दिया जा रहा है की इस शहर का ऐतिहासिक और शाही लुक बरक़रार रहे।जिसकी झलक शहर के चौराहों की सजावट में साफ़ दिखती है।नगर के कोतवाली चौराहे से नवाब युसूफ रोड पर पहले सुलभ काम्प्लेक्स।विधुत सब स्टेशन और कोतवाली कैंपस की दीवार गिराकर चौड़ा किया गया।और अब कोतवाली चौराहे से नवाब युसूफ रोड के दाहिनी तरफ लंबी नक़्क़ाशीदार और मेहरबनुमा दीवार का निर्माण हो रहा है जो बहुत ही ख़ूबसूरत है और बनने के बाद इसका नज़ारा ही कुछ और होगा।बिजली के खम्बों और ट्रांसफारमर की शिफ्टिंग का कार्य भी चल रहा है।ताकि सड़क चौड़ी हो सके तो है न जौनपुर वासियों के लिये अच्छी ख़बर।
Wednesday 9 December 2015
मुक़दमे ही नहीं हरियाली और खुशहाली भी है इस कचहरी में।
जी हाँ जौनपुर कलेक्टरी कचहरी में सिर्फ मुकदमो का अम्बार नहीं बल्कि एक खूबसूरत बग़ीचा भी है। कचहरी के बीचो-बीच डी.एम. कोर्ट के पश्चिम तरफ दो हिस्सों में लगभग 10 हज़ार स्क्वायर फिट में फैले इस हरे-भरे अगस्त क्रांति उद्यान की बात ही निराली है। लंबे-लंबे दरख़्त हरी-भरी मक़मली घांस का जवाब नहीं। आप यक़ीन जानिये इस बग़ीचे में बैठने के बाद हरियाली और खुशहाली का वो एहसास होगा की सारी थकन मिट जाये। इस उद्यान की बाक़ायदा देखभाल का नतीजा है की अंदर जाने के बाद बाहर आने का मन नहीं होगा।एक खूबसूरत और हरे भरे बग़ीचे में जो भी विशेस्तायें होनी चाहियें लगभग सभी इसमें पायी जाती हैं। सुबह में यहाँ मॉर्निंग वाक करने वालों की अच्छी ख़ासी तादाद पायी जाती है। काश हर सरकारी दफ्तर सार्वजानिक स्थल स्कूल कॉलेज के आसपास ऐसे ही हरियाली हो। पेड़ लगाय जाएँ। तो पर्यावरण संतुलन की समस्या दूर हो जाय। तो कुछ पल आप इस बग़ीचे में गुज़ार कर ज़रूर सुकून का एहसास करें।
35 साल से पटे नाले की खुदाई शुरू।
जौनपुर। शहर को सुन्दर बनाने सड़कों को चौड़ा करने और अतिक्रमण से मुक्त करने का अभियान रफ़्तार पकड़ चुका है। इसी क्रम में अशोक टॉकीज़ से लेकर किला रोड तक 35 साल या उससे अधिक समय से पटे नाले की जेसीबी मशीन से खुदाई शुरू हो चुकी है। जिसके ऊपर लोगों ने मकान दुकान आदि बना लिया था। उल्लेखनीय है कि जब बारिश में पानी नालियों से निकालकर सड़क पर फैलता है तो लोग प्रशासन को दोष देते हैं जबकि बहुत सी परेशानियों की वजह हम खुद है। बहरहाल प्रशासन द्वारा किया जा रहा कार्य प्रशंसनीय है और हमें जनहित में सहयोग करना चाहिये।
Saturday 5 December 2015
सीटें पांच ख़्वाब प्रधानमंत्री के।
आज समाचारपत्रों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ये बयान प्रमुखता से छपा है की मुलायम पी एम राहुल डिप्टी पी ऍम अखिलेश का महागठबंधन फार्मूला।सूबे में प्रचंड बहुमत के साथ हुकूमत में आयी सपा सरकार को तब भारी झटका लगा जब लोकसभा सामान्य निर्वाचन2014 में उसे महज़ 5 सीटें मिली।फिर हाल ही में बिहार विधान सभा चुनाव में हुये दुर्गति के बाद भी ऐसे बयान पर ग़ालिब के शेर की कड़ी याद आती है कि दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है।दरअसल यूपी में महागठबंधन के आसार फिलहाल तो नहीं लगते।सपा को लगता है की अगर गठबंधन की ज़रूरत है तो जो भी आना चाहे हमारे पीछे आ जाय। और बसपा को लगता है की मुलायम और मोदी से मोहभंग के बाद हम एकमात्र विकल्प हैं फिर गठबंधन की आवश्यकता ही नहीं रह जाती यही दोनों की भूल और गलत फहमी है। जबकि बिहार में पिछले कई दशक से नितीश और लालू ही सत्ता में रहे थे।और वहां के प्रमुख प्रादेशिक दल थे।फिर भी सारी ग़लत फ़हमियों खुशफहमियों और अहंकार को भूलकर लोकसभा चुनाव के नतीजों से सबक़ लेते हुये स्वार्थ सत्ता लोलुपता से ऊपर उठकर महागठबंधन बनाकर अमल करके भाजपा को हराकर मिसाल क़ायम की पर यूपी में सब मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री पहले बन रहे हसीन गठबंधन बाद में। तो ऐसी सोच से कामयाबी नहीं मिलने वाली।
अरहर दाल रियायती दर पर जौनपुर कचहरी में।
जौनपुर। आमजनता के लिए रियायती दर पर अरहर की दाल 120 रुपये किलो पर उपलब्ध है।इसके लिये आपको राशन कार्ड लेकर कलक्ट्री कचहरी के कर्मचारी कल्याण निगम के डिपो पर जाना होगा। हर राशन कार्ड पर दो किलो दाल मिलने की सुविधा है। एक किलो के पैक में उपलब्ध ये दाल अच्छी और स्वादिष्ट है। तो हर वो नागरिक जिसके पास राशन कार्ड उपलब्ध है उत्तर प्रदेश सरकार की इस सुविधा का लाभ उठाकर दो किलो अरहर दाल 120 रुपये किलो की दर से प्राप्त कर सकता है।
Thursday 3 December 2015
दरिया किनारे प्यासों का मातम। उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
जौनपुर। आज इस्लामिक कैलेन्डर के माह सफ़र की 20 तारीख़ थी।इसी तारीख़ को हर साल आक़ा हुसैन के अज़ादार पूरी दुनिया में इमाम हुसैन का चेहलुम मनाते हैं।आज सुबह से ही लोग गोमती नदी के तट यांनी अली घाट पर इकठ्ठा होना शुरू हुये और देखते-देखते हर तरफ सिर्फ काले कपडे में हुसैन के अज़ादार और कुछ नहीं।सबसे पहले मौलाना महफ़ुज़ूल हसन खान ने मजलिस को खेताब किया। मौलाना हसन अकबर और रज़ी बिस्वानी ने जुलूस उठने के बाद तक़रीर की। दरिया किनारे पानी के अंदर हुसैन के अज़ादारो ने जब लबबैक या हुसैन की सदा बुलंद की और अलम ताबूत ज़ुल्जना को देखकर हर किसी को कर्बला के प्यासे शहीद याद आये और लोगों ने नम आँखों से अपने इमाम को याद किया।आज से 1400 सौ साल पहले तब के आतंकवादी यज़ीद और उसके साथियों ने इमाम हुसैन और उनके साथियों का बेरहमी से क़त्ल किया। और आज उनके चाहने वाले उनकी याद में पानी की सबील चलाते हैं और लोगों कोखाना खिलाते हैं। तब हज़रत इमाम हुसैन ने क़ुर्बानी देकर आतंकवाद का सर कुचला और आज उनके चाहने वाले हुसैन का नाम लेकर आतंकवाद का विरोध कर रहे। भारी तादाद में मौजूद आक़ा के अज़ादारो के इस चेहलुम के प्रोग्राम का संचालन असलम नक़वी और मेहँदी आब्दी ने किया।
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