Monday 16 January 2017

हार है या है जीत, जंग थी या था ड्रामा।

चुनाव आयोग का फैसला आ चुका है। अब सपा और साईकिल दोनों अखिलेश की है ये ऐलान बाक़ायदा हो चुका है। आने वाले चुनाव में गठबंधन सहित सीटों का चुनाव एक-दो दिन में होने की ख़बर है। सबकुछ पहले से तय था बस घोषणा होना बाक़ी है। पर इस पूरे प्रकरण या यूं कहें की समाजवादी पार्टी में उठा विवाद जिसने संग्राम का रूप लिया और आख़िरकार ये विवाद चुनाव आयोग तक पहुंचा था। और इस पूरे मामले में राजनैतिक पंडित, सियासत के जानकार और मीडिया से जुड़े लोग अक्सर भ्रमित रहे की ये वास्तव में जंग थी या बाक़ायदा रचा गया सियासी ड्रामा जिसका मक़सद सिर्फ और सिर्फ अखिलेश को बड़े ही ड्रामाई अंदाज़ से सपा की कमान सौपना, अखिलेश के नेतृत्व को स्थापित करना, अपनी सियासी विरासत को पूर्णतया अखिलेश को सौपना तो नहीं। महीनो तक मीडिया और सभी का ध्यान भटकाना या आकर्षित करना था। ये मुलायम सिंह की हार है या जीत, ये जंग थी या ड्रामा कुछ साफ हो चुका है और कुछ साफ होना बाक़ी है। पर असल नतीजा तो प्रदेश की जनता सुनाएगी।

अखिलेश को मिली साईकिल, मुलायम सिंह यादव हुये पैदल।

आख़िरकार सियासी जंग में बाप बेटे से हार गया। चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव को साईकिल चुनाव चिन्ह भी दिया और उनके नेतृत्व वाले दल को ही असली समाजवादी पार्टी माना है।मुलायम सिंह ने जिस समाजवादी पार्टी को बनाया उसे इस मुक़ाम तक पहुँचाया और सन् 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुमत के बाद उन्हें ढेर सारे लोगों की भावनाओं के विपरीत सत्ता की बागडोर सौंप दी। आज उसी बेटे से छिड़ी सियासी जंग हार गए। उनकी आँखों के सामने उनके अपने लोग ख़ुद उनके बेटे ने उनका साथ छोड़ा और अब पार्टी पर हक़ किसका होगा ये फैसला भी चुनाव आयोग ने मुलायम सिंह के ख़िलाफ़ सुना दिया। अब क्या किसी दूसरी पार्टी को अपना कर मुलायम सिंह बेटे को चुनाव में भी चुनौती देंगे ऐसी चर्चा है। देखिये हुकूमत, सियासत जो न करा दे। तो बेशक ये इस जंग का अंत नहीं, पिक्चर अभी बाक़ी है। देखते चलिए किस्सा कुर्सी का। जंग बाप-बेटे की।