Thursday 12 May 2016

कामयाबी का एक ही मंत्रा मज़बूत इरादे के साथ लगे रहो- क़ासिम आब्दी आईएस टॉपर।

जिनके इरादे कमज़ोर हों और जो त्वरित सफलता चाहते हों उनके लिये यहाँ कोई जगह नहीं और जिनके इरादे मज़बूत हों, हौसले बुलंद हों और बगैर थके अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगे रहना जानते हों, उनके लिए सिविल सर्विसेज से आसान कोई एग्जाम नहीं। ये उदगार हैं सिविल सर्विसेज़ में 186वीं रैंक हासिल करने वाले जौनपुर के सपूत मोहम्मद क़ासिम आब्दी के। हमसे मोबाइल पर हुयी बातचीत में बहुत ही सहज दिखे। बड़ी ही सरलता के साथ पूछे गए हर सवाल का बखूबी के साथ जवाब दिया और बातचीत में ये एहसास हुआ कि क़ासिम वाक़ई एक अच्छे व्यक्तित्व के मालिक हैं, बड़े ही खुश मिजाज़ और देश-समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा है। ये पूछने पर की ये इरादा कब बना और किसकी प्रेरणा काम आयी तो क़ासिम का कहना था की बचपन में पापा ने कहा बेटा तुम्हे आईएस बनना है तब मैं जानता भी नहीं था की कैसे क्या होगा पर ये तय कर लिया की बनना है तो बनना है और इस मिशन में माँ, बाप, चाचा और सभी का सहयोग रहा पर असल प्रेरणास्रोत तो मामा जवाद साहब थे जो ख़ुद प्रशासनिक सेवा में रहे। उन्हें तो देखकर ही हौसला मिलता था। साल 2010 में इंजिनीरिंग में सेवा का अवसर मिला पर इन्होंने सिर्फ तैयारी को ही अपना रास्ता चुना। ये पूछे जाने पर की मरहूम ज़फरुल हसन खान और उनके बेटे नैय्यर हसनैन खान के बाद एक लंबे अरसे के बाद आपका चयन इस जनपद के आपकी कम्युनिटी से हुआ तो उनका कहना था की ये बात तो हमें नहीं मालूम थी पर इस बात का कष्ट ज़रूर था की इस सेवा में हमारे जनपद से हर वर्ग के होनहारों का चयन होता है तो हमारे वर्ग से क्यों नहीं और मैंने सोचा था कि क्यों न इस मिथक को मैं ही तोड़ूँ और में सफल रहा। अपने जनपद के नौजवान साथियों के लिये क्या सन्देश है पूछने पर उन्होंने कहा सिर्फ एक मंत्रा पूरी लगन के साथ बगैर थके, डिगे बस लगे रहो कामयाबी आपके क़दम चूमेगी।तो क्या इस बार चयन की उम्मीद थी इस सवाल पर श्री आब्दी ने कहा उम्मीद तो मुझे पिछली बार ही थी पर नाकामयाबी पर कभी हताश न होकर हमेशा नई ऊर्जा से लगा रहा। और इसबार आख़िरकार कामयाबी मिल ही गयी।

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