जौनपुर।अज़ादारी का मरकज़ (केंद्र) है। न जाने कितनी ऐतिहासिक मजलिसों जुलूस इमामबारगाह को अपने दामन में समेटे है।अंजुमन हुसैनिया बलुआघाट के ज़ेरे एहतेमाम होने वाली इस शब्बेदारी की तारीख़ चौहत्तर साल पुरानी है। सबसे पहले उस वक़्त के आक़ा के अज़ादार मरहूम नजफ़ अली मरहूम हादी हसन हददु जैसे लोगों ने लखनऊ की अज़ादारी से प्रभावित होकर इस शब्बेदारी को क़ायम किया। सबसे पहले इस शब्बेदारी का आयोजन मीर ज़ामिन अली पेशकार मरहूम की इमाम बारगाह में किया गया। फिर जगह कम होने के कारण इसे मक़बूल मंज़िल में ट्रान्सफर कर दिया गया। तब से लगातार यहीं हो रही है।इस 74 साल के इतिहास में मुल्क का शायद ही कोई मशहूर नौहाख्वा या अंजुमन हो जो यहां न आयी हो।मश्हूर नाज़िम मरहूम सक़लैन साहब ने काफी अरसे तक इस शब्बेदारी की नेज़ामत किया। पूर्वांचल सहित मुल्क के कई शहरों से लोग इसमें शिरकत करते हैं। इस साल जनाब अहमद बिजनौरी साहब नेज़ामत करेंगे।मौलाना सयैद आबिद हुसैन नौगावां सादात मजलिस को खेताब करेंगे।इसके साथ ही स्थानीय और दुसरे जनपदों की अंजुमने नौहा मातम करेंगी। अंजुमन के नौजवान बुज़ुर्ग मेंबर बड़े खुलूस के साथ एहतेमाम करते है। मोहल्ले और शहर भर के लोगों का भी भरपूर सहयोग होता है। पूरी रात ज़िक्रे हुसैन और आतंकवाद और आतंकवादियों पर लानत भेजी जायेगी।
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