Sunday 29 November 2015

इस्लाम और आतंकवाद में फर्क़ कैसे करें ?



इस्लाम और आतंकवाद के बीच का फर्क़ स्पष्ट रूप से देखना है तो हुसैन को देखो कर्बला को देखो।एक दम साफ-साफ और व्यवहारिक फर्क़ दिखेगा।नमाज़ पढ़ना क़ुरान की तेलावत करना दाढ़ी रखना दोनों तरफ था। लेकिन एक पक्ष वो था जिसने मुहम्मद साहब के घराने को ही तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद किया। जिसमे छः माह का बच्चा भी शामिल था।ज़ुल्म किया ख़ैमों(कैम्पों) में आग लगा दी। हथकड़ी-बेड़ी पहनाई। बचे लोगोंको बेइंतेहा प्रताड़ित किया। वो यज़ीद(आतंकवादी) और उसके साथी थे।दूसरा पक्ष हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथी थे। जो भूखे रहे प्यासे रहे ज़ुल्म की इन्तहा थी। शहीद हो गए असीर हुये लेकिन हक़ का सत्य का मज़लुमियत का इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा। ठीक वैसा ही आज भी है।जहाँ भी हुसैनी किरदार(चरित्र) है। हक़ है सत्य है मज़लुमियत है इंसानियत है वहां बेशक इस्लाम है।और ये लोग मस्जिद से घर तक आतंकवाद के बुरी तरह शिकार हैं। दूसरी तरफ नमाज़ रोज़े क़ुरान की तेलावत दाढ़ी टोपी के साथ-साथ ज़ुल्म है।

ज़ोर-ज़बरदस्ती है। बेकसूरों का क़त्ल है।अल्लाह के घर मस्जिद और शहर-शहर बम के धमाके हैं दहशत है वो इस्लाम नहीं आतंकवाद है।यहाँ ये उल्लेखनीय है की जो खुलकर जमकर आतंकवाद का विरोध करे । चाहे मौत ही क्यों न आ जाय। ये हुसैनी किरदार और इस्लाम है। जो आतंकवादियों का खुलकर जमकर विरोध न करे उनके लिए हमदर्दी रखे सहयोग करे वो दिखने में मुसलमान जैसे हो पर वो दरअसल आतंकवादी हैं। इमामे हुसैन के चेहलुम के मौके पर पूरी दुनिया से दर्शनार्थी करोड़ों की तादाद में कर्बला पहुच चुके हैं। स्थानीय इमाम हुसैन के चाहने वाले दर्शनार्थियों की इतनी सेवा करते है। जो दुनिया के पैमाने पर मिसाल है। यही मानव सेवा इस्लाम है।जो पूरी दुनिया के लिए आतंक का कारण हैं वो निश्चिंत आतंकवादी ।जो फर्क़ हज़रत इमाम हुसैन और यज़ीद में है। वही इस्लाम और आतंकवाद में है।या हुसैन जय हिन्द । दरअसल हिंदुस्तान की मूल आत्मा हुसैनी और आतंकवाद की दुश्मन है। जिसपर हमें बेइंतेहा गर्व है।

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