Thursday 11 August 2016

दल-बदल का मौसम और छोड़-पकड़, मतलब का आया त्यौहार है।

जैसे-जैसे उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव क़रीब आ रहा है, वैसे-वैसे प्रदेश के नेताओं की विचारधारा, रहनुमा और दल भविष्य के एतबार से बहुत तेज़ी से बदल रहा है। हर रोज़ वर्तमान और पूर्व विधायक का एक दल से दूसरे दल में जाने की ख़बरें अख़बार में छपना आम है। विधानसभा चुनाव जीतने,आने वाली सरकार में अपनी भूमिका तय करने में हर रोज़ नेता अपना राजनैतिक ठौर-ठिकाना और प्राथमिकताएं बदल रहे हैं। जनता भी इस स्वार्थपरक बदलाव,आने-जाने और पल में विचारधारा और दल बदलने को बड़े ग़ौर से देख रही है। और असल ताक़त तो लोकतंत्र में जनता ही है, जो बड़ी ही ख़ामोशी से इस खेल पर अपनी नज़र रखे है और उतनी ही गंभीरता से जब फैसला लेती है तो तख़्त-ताज हुकूमत सब कुछ बदल जाते हैं और नेताओं की चालाकी भी धरी रह जाती है। बहरहाल ये दल-बदल, चोला और रहनुमा और नेता बदलने का दौर है बड़ा ही दिलचस्प।

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