Sunday 12 March 2017

ईवीएम् मशीन से पहले अपनी कार्यशैली का पुनरावलोकन ज़्यादा अहम् है।

यूपी के विधानसभा के चुनाव में भाजपा के ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने के फ़ौरन बाद बसपा सुप्रीमो मायावती जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर मज़बूती के साथ गंभीर सवाल खड़े किये। इसमें दो राय नहीं है कि इससे पहले भी देश के कई नेताओं ने बाक़ायदा इस पर सवाल खड़े किये हैं। और ये बात भी सच है कि अमेरिका जैसे विकसित देश भी इसे छोड़ चुके हैं। तो बेशक इस गंभीर सवाल पर देश में विचार-विमर्श होना चाहिए और नतीजे पर भी पहुचना होगा। क्योंकि जो लोकतंत्र को ख़तरा पैदा करे ऐसी व्यवस्था बनाये रखना मुनासिब नहीं। पर इससे कम अहम् ये नहीं कि बसपा को अपनी पिछले कई वर्षो की कार्यशैली का पुनरावलोकन और समीक्षा गंभीरता पूर्वक करना होगा। सन् 2014 के संसदीय चुनाव में जब प्रदेश की स्थापित पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली अति पिछड़ा साथ छोड़ गया तो लगभग तीन साल के अंतराल में 2017 के चुनाव आने तक ज़िले-ज़िले जाकर कितने कार्यकर्त्ता सम्मलेन किये गए। कार्यकर्ताओं से संवाद मशविरा हुआ ही नहीं और न ही लगातार छोड़ कर जा रहे अतिपिछड़ों के जाने की वजह और उन्हें जोड़ने पर कितना चिंतन मंथन और प्रयास किया गया। तो नतीजा शून्य ही निकलेगा इतना ही नहीं अनुसूचित जाति के लोगों को भी वोटबैंक से ज़्यादा की तरजीह नहीं दी गयी। ऐसे में लोकतंत्र में तानाशाही रवैये से किसी को बहुत दिन बांधे नहीं रखा जा सकता है। जहाँ मान्यवर कांशीराम ने दलित समुदाय के अंदर एक नई जागरूकता पैदा की वहीँ अतिपिछड़े वर्ग की ढेर सारी जातियां जिनकी कोई राजनैतिक पहचान नहीं थी उन्हें खड़ा किया जगाया और जोड़ने का काम किया पर वक़्त के साथ ये सारे लोग धीरे-धीरे साथ छोड़ते गए। टिकटों की तिजारत के इलज़ाम लगते रहे और आज तो अस्तित्व का संकट है। और इन्ही छोड़ कर गए लोगों को मोदी और अमितशाह ने बड़ी ही राजनैतिक चतुराई से अपने साथ जोड़ा और सपा के सिर्फ एक बिरादरी के सत्ता के लाभ लेने और दुरुपयोग ख़िलाफ़ आमजन के ग़ुस्से को अपने पक्ष में इतनी कामयाबी के साथ ले गए कि केंद्र सरकार की विफलताओं की चर्चा न जाने कहाँ गम हो गयी। इतना ही नहीं सपा-बसपा कांग्रेस ने इतना मुसलमान-मुसलमान किया इनके वोट अपने पक्ष में लेने के लिए। उतना बीजेपी का रास्ता और आसान हो गया। बहरहाल सपा-बसपा अब से नहीं जागे तो इनके वजूद क़ायम रहने में भी मुझे शक है। सिर्फ प्रेस वार्ता रैली से काम नहीं चलेगा आमजन और आम कार्यकर्ता से राबता क़ायम करना होगा विशेष् रूप से मायावती जी और बसपा को।

No comments:

Post a Comment