Saturday 5 March 2016

आज़ादी की नई इबारत लिखने को बेताब....है हक़ हमारा आज़ादी

है हक़ हमारा आज़ादी, हम लेकर रहेंगे आज़ादी, आज़ादी,आज़ादी आज़ादी जी हाँ ज़मानत पर रिहा होने के बाद jnu छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया ने कैंपस में उपस्थित विशाल जनसमूह को 50 मिनट तक जिस अंदाज़ में संबोधित किया उसमे न डर था न ख़ौफ़ न हड़बड़ाहट न बौखलाहट बल्कि गज़ब का आत्म विश्वास, शासन-सत्ता और व्यवस्था के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त आक्रोश पर भारत के संविधान क़ानून और न्याय पर पूरा भरोसा। इस पूरे भाषण का मुल्क पर दो असर हुआ एक तो भाजपा,मोदी,संघ आदि के समर्थक एक विशेष् विचारधारा के पोषक लोगों को बड़ा नागवार गुज़रा और उन्होंने अपने तर्क-कुतर्क से इसे ग़लत साबित करने की हर कोशिश की गयी। दूसरे वो लोग जिनकी तादाद बहुत ज़्यादा उन्हें इस आज़ादी के नारे में अपनी गुलामी साफ नज़र आयी और आज़ादी अपना अधिकार भी समझ आया और कन्हैया की तक़रीर में एक कशिश, उमंग, विश्वास और अपनी-अपनी गुलामियों से आज़ाद होने की मज़बूत उम्मीद भी नज़र आयी। और समझ आया की वो जिसे हम बरसों से अपनी समस्या समझते थे वो अब ग़ुलामी (दासता)में बदल चुकी है। और समस्या का तो निदान हो सकता है। पर ग़ुलामी से मुक्ति के लिए तो आज़ादी का झंडा बुलंद ही करना पड़ता है। 15 अगस्त 1947 के बाद ऐसा लगता था कि अब इस मुल्क में न तो ग़ुलामी है न ही आज़ादी की कोई ज़रुरत। पर कन्हैया ने आज़ादी और क्रांति की नई इबारत लिखना शुरू किया है। और लोगों को उनकी गुलामी का एहसास कराया और आज़ादी का जज़्बा पैदा किया है। इस नौजवान ने कोई सपना नहीं बेचा बल्कि जो ग़ुलाम बनाये रखना चाहते है गुलामी पसंद और उनके अन्धभक्त उनकी चूले हिलायी हैं और आम भारतीय में नया जोश। आज़ादी का नारा मात्र बड़ा जोश पैदा करता है और लड़ने जीतने की ताक़त भी देता है। अब देखते हैं आगे ...... आज़ादी आज़ादी आज़ादी जयहिंद।

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